अप्रतिम कविताएँ
शहर की दीवाली पर अमावस का आह्वान
ओ मावस की काली रात!
आ!
आ फिर से इस जीवन में
गहन गर्भ में धारण कर
सींच मुझे अपने सच में
आ! आवाहन करती मैं।

चुन्धियाई हैं आँखें ये
बद्हवास इस रौशनी से,
और कान भी धधक रहे
चिल्लाते इस उत्सव में।
रात घनी, निस्तब्ध गगन
कर मेरा तू आलिंगन
डूबूँ मैं नीरवता में।

दीप एक बस जलता है
मन प्रश्नों से सजता है
अर्पित करती हूँ तुझको
तारों में यह शामिल हो।
युग बीते ना मिल पाई
मीत जिन्होंने बतलाई
थी अनन्त की बात मुझे।

अब धरती से बिछड़ी हूँ
अम्बर से भी बिछड़ी हूँ
एक फ़्लैट में चिपट गए
दिशा सभी, भुरभुरी हुई
पूजा की सब विधियाँ भी।
पर तू अब भी याद मुझे।

रुद्रा, श्यामा, काली आ
अब तुझसे ना डर लगता
तुझको अन्दर पाया है
तुझको बाहर देखा है
तेरी बाटी से पान किया।
शक्ति मुझे फिर से दे दे
इस चिल्लाती चम चम में
धमकाती आवाज़ों में
अपना तू सौन्दर्य दिखा
जो मानव ने भुला दिया।

शक्ति, प्रेम, पोषक ममता
काली में भी कहीं छिपा
चिर ज्योति धारण करता।
तू ही जीतेगी आखिर
यह मुझको निश्चिंत पता।
आ छाती से मुझे लगा।
जो तेरा वर है वह ही
है मेरा वर, वह शिव ही --
- वाणी मुरारका
Vani Murarka
[email protected]
विषय:
अंधेरा (4)
समाज (31)
रात (5)

काव्यालय को प्राप्त: 15 Mar 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 25 Oct 2019

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 शहर की दीवाली पर अमावस का आह्वान
इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह


युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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