अप्रतिम कविताएँ
एक बहुत ही तन्मय चुप्पी
एक बहुत ही तन्मय चुप्पी ऐसी
जो माँ की छाती में लगाकर मुँह
चूसती रहती है दूध
मुझसे चिपककर पड़ी है
और लगता है मुझे
यह मेरे जीवन की
लगभग सबसे निविड़ ऐसी घड़ी है
जब मैं दे पा रहा हूँ
स्वाभाविक और सुख के साथ अपने को
किसी अनोखे ऐसे सपने को
जो अभी-अभी पैदा हुआ है
और जो पी रहा है मुझे
अपने साथ-साथ
जो जी रहा है मुझे!
- भवानीप्रसाद मिश्र
साहित्य अकादेमी पुरस्कृत संकलन "बुनी हुई रस्सी" से

एमज़ोन पर उपलब्ध
विषय:
चुप्पी (7)

काव्यालय पर प्रकाशित: 4 Mar 2022

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पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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