अप्रतिम कविताएँ
परिवर्तन जिए
अनहोनी बातों की
आशा में जीना
कितना रोमांचकारी है

मैं उसी की आशा में
जी रहा हूँ
सोच रहा हूँ
हवा की ही नहीं
सूर्य किरणों की गति
मेरी कविता में आएगी
मेरी वाणी
उन तूफ़ानों को गाएगी
जो अभी उठे नहीं है
और जिन्हें उठना है
इसलिए कि
जड़ता नहीं
परिवर्तन जिए

बच्चे का भय
और बच्चे का कौतूहल
मेरी आंखों और
शब्दों से फूटे
तो टूटे
सामने खड़ा पहाड़
तयशुदा पक्की चट्टानों का
कचूमर निकले
इसके टूटने से
मेरे तुम्हारे उसके
प्राणों का
तो एक अनहोनी हो जाए
मरते-मरते
जीने का मतलब निकले
फिसले-फिसले-फिसले
यह पहाड़ सामने का
काला
और तयशुदा

देखें हम
यह एक करिश्मा
साथ-साथ
और जुदा-जुदा!
- भवानीप्रसाद मिश्र
भवानीप्रसाद मिश्र के काव्य संकलन परिवर्तन जिए से
विषय:
प्रेरणा (19)

काव्यालय पर प्रकाशित: 21 Jun 2019

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युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

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भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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