अप्रतिम कविताएँ

रोशनी
रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक सी दिया करती है।

मैं खोल देता हूँ चुपचाप किवाड़,
रोशनी पे सवार तेरी परछाई,
मेरे कमरे में उतर आती है,
सो जाती है मेरे साथ मेरे बिस्तर पर।
- मधुप मोहता
काव्यपाठ: नूपुर अशोक
Madhup Mohta
Email : [email protected]
विषय:
रोशनी (4)

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 रोशनी
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युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

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कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
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