अप्रतिम कविताएँ
खिलौने की चाबी
इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
रोटी की तरह गोल-गोल
तुलसी चौरे पर गोल-गोल
किचन-ऑफिस में गोल-गोल

बन्द करो अब चाबी भरना
सो जाओ माँ अब तो दो पल
पसर कर, सारी दुनिया भूलकर
बिना किसी अपराध बोध के।
- नूपुर अशोक
विषय:
स्त्री (18)
माँ ममता (5)

काव्यालय को प्राप्त: 5 May 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 9 May 2025

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चीर कर गमों के अँधेरे को
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धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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