अप्रतिम कविताएँ

वो चुप्पी
ख़ामोश थी नहीं
इस शोर में
सन्नाटे की
चीखती सी आवाज़ थी
देखो,
तो तेज़ नज़रों से छन्न करती
छूओ,
तो सिमटती
और उँगलियों को झुलस देती
उजड़ी कहानियाँ कहती
बरबादियों की दास्तान सुनाती
दुत्कारती
जीवन से जूझती भिड़ती
कई सवाल उठाती
और खुद जवाब होती
वो चुप्पी

"अफ़ग़ान गर्ल"
फोटोजर्नलिस्ट स्टीव मक्करी द्वारा ली गई यह प्रसिद्ध तस्वीर अफ़घानिस्तान की एक शरणार्थी बच्ची की है| उन्होंने यह तस्वीर एक रिफ्यूजी कैंप में ली थी जो नैशनल जियोग्राफिक के जुलाई १९८५ अंक में प्रकाशित की गई थी|
प्रिया नागराज नें यह कविता इस तस्वीर से प्रेरित होकर लिखी है|
इस तस्वीर के विषय में और जानने के लिए यहाँ क्लिक करें|
- प्रिया एन. अइयर
Priya Nagaraj: Email [email protected]
विषय:
युद्द तकरार (7)
अत्याचार आतंक (5)

काव्यालय पर प्रकाशित: 20 May 2016

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 चल पथिक तू हौले से
 वो चुप्पी
इस महीने :
'तुम्हारे साथ रहकर'
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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