अप्रतिम कविताएँ
किधौं मुख कमल ये
किधौं मुख कमल ये कमला की ज्योति होति,
किधौं चारु मुख चंद चंदिका चुराई है।
किधौं मृग लोचनि मरीचिका मरीचि किधौं,
रूप की रुचिर रुचि सुचि सों दुराई है॥
सौरभ की सोभा की दसन घन दामिनि की,
'केसव' चतुर चित ही की चतुराई है।
ऐरी गोरी भोरी तेरी थोरी-थोरी हाँसी मेरे,
मोहन की मोहिनी की गिरा की गुराई है॥
- केशवदास
विषय:
कामुकता (5)

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पटाखों के साथ-साथ
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सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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