अप्रतिम कविताएँ
कॉरोना काल का प्रेम गीत

यह प्रतीक्षा की घड़ी है,
तुम उधर असहाय, हम भी हैं इधर निरुपाय
उस पर
बीच में दुविधा अड़ी है!
यह प्रतीक्षा की घड़ी है!

यूँ हुए अभिशप्त,
अर्जित पुण्य
हो निष्फल गए हैं,
स्वर्ग से लाये धरा पर
सूख सब
परिमल गए हैं,

यह समीक्षा की घड़ी है,
क्या किया है पाप हमने या कि तुम ने
या कि जग ने,
जो ये विपदा आ पड़ी है!

तन था
वृन्दावन सरीखा
क्यों शिलावत हो गया है,
मन कन्हैया था,
अचानक
क्यों तथागत हो गया है,

यह परीक्षा की घड़ी है,
एक भी उत्तर अभी सूझा नहीं है
और सम्मुख
यक्ष - प्रश्नों की लड़ी है!
- अमृत खरे
काव्यपाठ: जोगेंद्र सिंह
विषय:
कॉरोना और लॉक डाउन (5)

काव्यालय को प्राप्त: 18 May 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 3 Jul 2020

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युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

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कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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