अप्रतिम कविताएँ
अविद्या और विद्या
अन्धतमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते ।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ विद्यायां रताः ।।
(यजु 40/12)
मात्र अविद्या की उपासना जो करते हैं,
घनान्धतम में वे प्रवेश करते रहते हैं।
उनसे अधिक अंधेरे, उनको घेरे रहते,
उपासना विद्या की केवल जो करते हैं !
अन्यदेवाहुर्विद्यायाऽ अन्यदाहुरविद्यायाः।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचाक्षिरे।।
(यजु 49/13)
विद्या और अविद्या पथ के श्रेय भिन्न हैं,
कर्म भिन्न, परिणाम भिन्न हैं, प्रेय भिन्न हैं।
इतना ही हम धीरों से सुनते आये हैं,
तरह-तरह से वह यह ही कहते आये हैं!
- अज्ञात
- अनुवाद : अमृत खरे
पुस्तक 'श्रुतिछंदा' से
विषय:
अध्यात्म दर्शन (34)

काव्यालय को प्राप्त: 25 Sep 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Dec 2023

***
अज्ञात
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अविद्या और विद्या
 उऋण रहें
 कौन
 त्र्यम्बक प्रभु को भजें
 नया वर्ष
 पावन कर दो
 मंगलम्
इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह


युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website