अप्रतिम कविताएँ
आत्म-समर्पण
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
यह न मुझसे पूछना, मैं किस दिशा से आ रहा हूँ,
है कहाँ वह चरणरेखा, जो कि धोने जा रहा हूँ,
         पत्थरों की चोट जब उर पर लगे,
         एक ही "कलकल" कहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
मार्ग में तुमको मिलेंगे वात के प्रतिकूल झोंके,
दृढ़ शिला के खण्ड होंगे दानवों से राह रोके,
         यदि प्रपातों के भयानक तुमुल में,
         भूल कर भी भय न हो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
हो रहीं धूमिल दिशाएँ, नींद जैसे जागती है,
बादलों की राशि मानो मुँह बनाकर भागती है,
         इस बदलती प्रकृति के प्रतिबिम्ब को,
         मुस्कुराकर यदि सहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
मार्ग से परिचय नहीं है, किन्तु परिचित शक्ति तो है,
दूर हो आराध्य चाहे, प्राण में अनुरक्ति तो है,
         इन सुनहली इंद्रियों को प्रेम की,
         अग्नि से यदि तुम दहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
वह तरलता है हृदय में, किरण को भी लौ बना दूँ,
झाँक ले यदि एक तारा, तो उसे मैं सौ बना दूँ,
         इस तरलता के तरंगित प्राण में -
         प्राण बनकर यदि रहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
- रामकुमार वर्मा
विषय:
जीवन (37)

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