अप्रतिम कविताएँ
स्वीकार करो यह प्रार्थना
हे प्रभु अब हिम्मत और विश्वास रख पाने का बल दो
काल के पंजों को रोक जीवन का अमृत विमल दो

भय से है आक्रांत मानव लाश ढोते थक गया है
निर्भय करो अपनी कृपा से मन में आशाएं प्रबल दो

इस आपदा के काल में भी लिप्त हैं जो स्वार्थ में
उनकी आंख में पानी मन में भावनायें सजल दो

माना कि मानव भूल कर बैठा है तुमको भूल कर
किंतु हमको तात हे देकर क्षमा भक्ति अचल दो

तुम जो करोगे अच्छा ही होगा पूर्ण हमें विश्वास है
जैसे तुम्हें लगता उचित वैसे इस मुश्किल का हल दो

सृष्टि क्रंदन कर रही बस इक तुम्हारा आसरा है
अश्रु इसके पोंछ कर सुरभित हंसी निर्मल नवल दो
- शरद कुमार
विषय:
भक्ति और प्रार्थना (31)
कॉरोना और लॉक डाउन (5)

काव्यालय को प्राप्त: 27 Apr 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 May 2021

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पेड़ों के झुरमुट से
झाँकता
चाँद पूनम का
बिल्डिंगों की ओट में
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पहुँचा के घर
..

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चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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