सूरज का टुकड़ा
वक़्त के मछुआरे ने
फेंका था जाल
कैद करने के लिए
‘सघन तम’ को
जाल के छिद्रों से
फिसल गया ‘तम’
और
कैद हो गया
सूरज का टुकड़ा
वक़्त का मछुआरा
कैद किए फिर रहा है
सूरज के उस टुकड़े को
और
सघनतम होती जा रही है
‘तमराशि’ घट–घट में
उगानी होगी
नई पौध
सूरज के नए टुकड़ों की
जागृत करनी होगी बोधगम्यता
युग–शिक्षक के अन्तस में
तभी खिलेगी वनराशि
महेकगा वातास
छिटकेंगी ज्ञान–रश्मियाँ
मिट जाएँगी
आप ही आप
आपस की दूरियाँ
आओ!
अभी से
हाँ! अभी से
कूच करें
इस नये पथ की ओर
कहा भी गया है
जब आँख खुले
तभी होती है भोर!
तम = अंधेरा; राशि = मात्रा, समूह; बोधगम्यता = समझ आने की क्षमता; वातास = हवा
चित्रकार: नूपुर अशोक
काव्यालय को प्राप्त: 25 Jan 2022.
काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Jan 2022
इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह
युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?
हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।
किलकारी भरते
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह
भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।
नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...