चिट्ठी सी शाम
एक और चिट्ठी सी शाम
डूब गयी सूरज के नाम।
जाड़े की धूप और
कुहरे की भाषा
कोने में टँगी हुई
गहरी अभिलाषा
आसमान के हाथों
चाँदी का गुच्छा
ताल में खिली जैसे
फिर कोई इच्छा
छत से ऊपर उठते
धुएँ के कलाम
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सुरेन्द्र काले
Poet's Address: Nawab Cottage, Purdilpur, Gorakhpur
Ref: Naye Purane, September,1998
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा
कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।
हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।
जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
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